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जाने महाभारत की कुछ अनसुनी कहानीया जिसे शायद ही अपने सुनी होगी; हनुमान जी क्यों अर्जुन के रथ के ऊपर झंडे पर बैठे थे?

जाने महाभारत की कुछ अनसुनी कहानीया जिसे शायद ही अपने सुनी होगी; हनुमान जी क्यों अर्जुन के रथ के ऊपर झंडे पर बैठे थे?

हनुमान कदली वन में बैठे-बैठे राम को जप रहे थे तभी वह पर अर्जुन आते है और बगीचे से फूल तोड़ने लगे। जिससे हनुमान जी का ध्यान टूट गया और वो अर्जुन के पास जा कर बोले।

हनुमान: कौन हो आप और यहाँ से फूल कैसे तोड़ रहे हो बिना मुझसे इजाजत लिया?
अर्जुन: मैं अर्जुन हो! और ये फूल मैं  श्री कृष्णा की पूजा करने के लिए ले जा रहा हूँ।
हनुमान: आप सही काम गलत तरीके से कर रहे है, और मुस्कराने लगे।
अर्जुन: आप मुस्करा क्यों रहे है?
हनुमान: अब जिसका भगवान ही चोर है उसका भक्त भला कैसा हो सकता है?
अर्जुन: आप मेरे भगवान के बारे में ऐसा कैसे बोल सकते है। आप के भगवान कौन से बहुत अच्छे थे? उन्होंने राम सेतु बनवाने के लिए सरे वानरों को लगा दिया, जब भगवान थे तो क्यों नहीं उन्होंने बाणो से पूल बना दिया?
हनुमान: वो नहीं बना सके तो क्या आप के भगवान बना सकते है ?
अर्जुन: इन छोटे कामो के लिए मई भगवान को नहीं याद करता, बल्कि मै इसे खुद बना सकता हूँ।
हनुमान: ठीक है! जब राम जी ने बनाया था तब उस पर से सरे वानर चले गए थे अगर आपके सेतु से एक ही वानर चला जय तो मै जानू ?
अर्जुन: चला जाएगा।
हनुमान:- अगर सेतु टूट गया तो?
अर्जुन: नहीं टूटेगा।
हनुमान: फिर भी अगर टूट गया तो?
अर्जुन: तो मै अपनी आहूति आग में दे दूंगा, खुद को समाप्त कर दूंगा

हनुमान और अर्जुन में शर्त लग गया। अर्जुन ने तीर धनुष उठाया, तमंचा साधा और बाणो की वर्षा कर दी जिससे की सेतु बन कर तैयार हो गया। अब हनुमान जी ने भी बहुत बड़ा आकार बनाया और जैसे ही उन्होंने अपना पहला पैर सेतु पर रखा, सेतु पाताललोक में समा गया। ये देख अर्जुन बहुत दुखी हुए अब उन्होंने लकड़ी इक्कठा किया और आग जला कर खुद की आहुति देने  तैयार हो गए। ये देख हनुमान जी ने उन्हें समझाया की कोई बात नहीं आप अगर हार भी गये तो, अब इसमें जान देने वाली क्या बात है परन्तु अर्जुन नही मान रहे थे।

अर्जुन: मै एक क्षत्रिय हूँ और क्षत्रिय अपना वचन कभी नहीं तोड़ता है।

अब हनुमान जी समझ गए की अब ये नहीं मानाने वाले है उन्होंने कृष्ण जी को याद किया और कहा प्रभु अब आप ही बचाइए इन्हे ये तो आज निपट गए।

कृष्ण का आगमन

कृष्ण भगवान ने एक ब्राम्हण का रूप लिया और वहा पहुंच गए 

कृष्ण अर्जुन सें : आप क्यों अपनी जान दे रहे है?
अर्जुन ने ब्राह्मण को प्रणाम किया और बोले: मै इनसे शर्त हार गया हूँ। इसीलिए मै अपनी आहूति देने जा रहा हूँ।
कृष्ण: बेसक आप अपनी जान दीजिए ( यह सुन हनुमान जी मन में ही बोल रहे थे की प्रभु जो कुछ समय ये जीवित रह सकते थे वो भी अब नहीं रहेंगे ) परन्तु ये बताइये जब शर्त लगा तो तीसरा कोई था यहाँ पर?
अर्जुन: नहीं!
कृष्ण: तो एक बार फिर से शर्त लगाइये और अब मै हूँ तो मै बताऊंगा कौन शर्त हारा और कौन जीता।

हनुमान और अर्जुन दोनों ने उनका  बात मान लिया और अर्जुन ने एक बार फिर से बाण चलाया और हनुमान जी ने फिर अपना आकर बड़ा किया और सेतु पर चलने लगे ये देख अर्जुन ने खुद से ही बोले हनुमान तो आज मरवा के ही मानेंगे। कृष्ण ने एक कछुए का को सेतु के निचे भेज दिया और हनुमान जी सेतु से पर हो गए। हनुमान जी ने सोचा की ये कैसे संभव है जब उन्होंने निचे देखा तो समझ गए की श्री कृष्ण अपना खेल खेल गए, हनुमान जी ने भी अपना हार मान लिया जब अर्जुन उन्हें हारने पर कुछ कहने जा रहे थे। तो श्री कृष्ण ने मन कर दिया और बोले की सही समय आने पर हनुमान जी को बोला जायेगा और जब महाभारत हुआ तो हनुमान जी अर्जुन के रथ के ऊपर झंडे में बैठे।

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